Thursday, November 21, 2013

माला में 108 मोती ही क्यों होते हैं, जानिए दुर्लभ रहस्य की बातें

 माला में 108 मोती ही क्यों होते हैं,
जानिए दुर्लभ रहस्य की बातें



क्या आप जानते हैं पूजा में मंत्र जप के लिए उपयोग की जाने वाली माला में कितने मोती होते हैं?

पूजन में मंत्र जप के लिए जो माला उपयोग की जाती है उसमें 108 मोती होते हैं। माला में 108 ही मोती क्यों होते हैं इसके पीछे कई धार्मिक और वैज्ञानिक कारण मौजूद हैं।

यह माला रुद्राक्ष, तुलसी, स्फटिक, मोती या नगों से बनी होती है। यह माला बहुत चमत्कारी प्रभाव रखती है। किसी मंत्र का जप इस माला के साथ करने पर दुर्लभ कार्य भी सिद्ध हो जाते हैं।

यहां जानिए मंत्र जप की माला में 108 मोती होने के पीछे क्या रहस्य है...

भगवान की पूजा के लिए मंत्र जप सर्वश्रेष्ठ उपाय है और पुराने समय से बड़े-बड़े तपस्वी, साधु-संत इस उपाय को अपनाते हैं। जप के लिए माला की आवश्यकता होती है और इसके बिना मंत्र जप का फल प्राप्त नहीं हो पाता है।

रुद्राक्ष से बनी माला मंत्र जप के लिए सर्वश्रेष्ठ मानी गई है। यह साक्षात् महादेव का प्रतीक ही है। रुद्राक्ष में सूक्ष्म कीटाणुओं का नाश करने की शक्ति भी होती है। इसके साथ ही रुद्राक्ष वातावरण में मौजूद सकारात्मक ऊर्जा को ग्रहण करके साधक के शरीर में पहुंचा देता है।

शास्त्रों में लिखा है कि-

बिना दमैश्चयकृत्यं सच्चदानं विनोदकम्।
असंख्यता तु यजप्तं तत्सर्व निष्फलं भवेत्।।


इस श्लोक का अर्थ है कि भगवान की पूजा के लिए कुश का आसन बहुत जरूरी है इसके बाद दान-पुण्य जरूरी है। इनके साथ ही माला के बिना संख्याहीन किए गए जप का भी पूर्ण फल प्राप्त नहीं हो पाता है। अत: जब भी मंत्र जप करें माला का उपयोग अवश्य करना चाहिए।

जो भी व्यक्ति माला की मदद से मंत्र जप करता है उसकी मनोकामनएं बहुत जल्द पूर्ण होती है। माला से किए गए जप अक्षय पुण्य प्रदान करते हैं। मंत्र जप निर्धारित संख्या के आधार पर किए जाए तो श्रेष्ठ रहता है। इसीलिए माला का उपयोग किया जाता है।

आगे जानिए कुछ अलग-अलग कारण जिनके आधार पर माला में 108 मोती रखे जाते हैं...

माला में 108 मोती रहते हैं। इस संबंध में शास्त्रों में दिया गया है कि...

षट्शतानि दिवारात्रौ सहस्राण्येकं विशांति।
एतत् संख्यान्तितं मंत्रं जीवो जपति सर्वदा।।


इस श्लोक के अनुसार एक सामान्य पूर्ण रूप से स्वस्थ व्यक्ति दिनभर में जितनी बार सांस लेता है उसी से माला के मोतियों की संख्या 108 का संबंध है। सामान्यत: 24 घंटे में एक व्यक्ति 21600 बार सांस लेता है। दिन के 24 घंटों में से 12 घंटे दैनिक कार्यों में व्यतीत हो जाते हैं और शेष 12 घंटों में व्यक्ति सांस लेता है 10800 बार। इसी समय में देवी-देवताओं का ध्यान करना चाहिए। शास्त्रों के अनुसार व्यक्ति को हर सांस पर यानी पूजन के लिए निर्धारित समय 12 घंटे में 10800 बार ईश्वर का ध्यान करना चाहिए लेकिन यह संभव नहीं हो पाता है।

इसीलिए 10800 बार सांस लेने की संख्या से अंतिम दो शून्य हटाकर जप के लिए 108 संख्या निर्धारित की गई है। इसी संख्या के आधार पर जप की माला में 108 मोती होते हैं।

एक अन्य मान्यता के अनुसार माला के 108 मोती और सूर्य की कलाओं का संबंध है। एक वर्ष में सूर्य 216000 कलाएं बदलता है। सूर्य वर्ष में दो बार अपनी स्थिति भी बदलता हैए छह माह उत्तरायण रहता है और छह माह दक्षिणायन। अत: सूर्य छह माह की एक स्थिति में 108000 बार कलाएं बदलता है।

इसी संख्या 108000 से अंतिम तीन शून्य हटाकर माला के 108 मोती निर्धारित किए गए हैं। माला का एक-एक मोती सूर्य की एक-एक कला का प्रतीक है। सूर्य ही व्यक्ति को तेजस्वी बनाता है, समाज में मान-सम्मान दिलवाता है। सूर्य ही एकमात्र साक्षात दिखने वाले देवता हैं।

ज्योतिष के अनुसार ब्रह्मांड को 12 भागों में विभाजित किया गया है। इन 12 भागों के नाम मेष, वृष, मिथुन, कर्क, सिंह, कन्या, तुला, वृश्चिक, धनु, मकर, कुंभ और मीन हैं। इन 12 राशियों में नौ ग्रह सूर्य, चंद्र, मंगल, बुध, गुरु, शुक्र, शनि, राहु और केतु विचरण करते हैं। अत: ग्रहों की संख्या 9 का गुणा किया जाए राशियों की संख्या 12 में तो संख्या 108 प्राप्त हो जाती है।

माला के मोतियों की संख्या 108 संपूर्ण ब्रह्मांड का प्रतिनिधित्व करती है।

एक अन्य मान्यता के अनुसार ऋषियों ने में माला में 108 मोती रखने के पीछे ज्योतिषी कारण बताया है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार कुल 27 नक्षत्र बताए गए हैं। हर नक्षत्र के 2 चरण होते हैं और 27 नक्षत्रों के कुल चरण 108 ही होते हैं। माला का एक-एक मोती नक्षत्र के एक-एक चरण का प्रतिनिधित्व करता है।

माला के मोतियों से मालूम हो जाता है कि मंत्र जप की कितनी संख्या हो गई है। जप की माला में सबसे ऊपर एक बड़ा मोती होता है जो कि सुमेरू कहलाता है। सुमेरू से ही जप की संख्या प्रारंभ होती है और यहीं पर खत्म भी। जब जप का एक चक्र पूर्ण होकर सुमेरू मोती तक पहुंच जाता है तब माला को पलटा लिया जाता है। सुमेरू को लांघना नहीं चाहिए।

जब भी मंत्र जप पूर्ण करें तो सुमेरू को माथे पर लगाकर नमन करना चाहिए। इससे जप का पूर्ण फल प्राप्त होता है।

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Source : 
https://www.facebook.com/photo.php?fbid=701746083178687&set=a.247256761960957.66068.247253911961242&type=1

Sunday, October 27, 2013

कान्वेंट स्कूल का सच

क्या आप भी अपने बच्चो को (CONVENT) में भेजते है ? ? ?


करीब २५०० सालो से यूरोप में बच्चे पालने की परंपरा नही थी बचा पैदा होते ही उसे टोकरी में रख कर लावारिस छोड़ दिया जाता था अगर किसी चर्च की व्यक्ति की नजर पड़े तोह वो बच जाता था नही तोह उसे जानवर खा जाते थे |

कोन्वेंट का सच :

जिस यूरोप को हम आधुनिक व खुले विचारो वाला मानते हैं, आज से ५०० वर्ष पहले वहाँ सामान्य व्यक्ति 'मैरेज' भी नहीं कर सकता था क्योंकि उनके बहुत बड़े 'दार्शनिक' अरस्तू का मानना था की आम जनता मैरेज करेगी तो उनका परिवार होगा, परिवार होगा तो उनका समाज होगा, समाज होगा तो समाज शक्तिशाली बनेगा,

शक्ति शाली हो गया तो राजपरिवार के लिए खतरा बन जाएगा । इसलिए आम जनता को मैरेज न करने दिया जाय । बिना मैरेज के जो बच्चे पैदा खोते थे, उन्हें पता न चले की कौन उनके माँ-बाप हैं, इसलिए उन्हें एक सांप्रदायिक संस्था में रखा जाता था, जिसे वे कोन्वेंट कहते थे उस संस्था के प्रमुख को ही माँ बाप समझे इसलिए उन्हें फादर, मदर, सिस्टर कहा जाने लगा ।

यूरोप के दार्शनिक रूसो के अनुसार बच्चे पति पत्नी के शारीरिक आनंद में बाधक है इसलिए इनको रखना अच्छा नही है किउंकि शारीरिक आनंद ही सबकुछ होता है | और एक दशानिक प्लेटो के अनु सर हर मनुष्य के जीबन का आखरी उद्येश्य है शारीरिक आनंद की प्राप्ति और बच्चे अगर उसमे रुकावट है तोह उसको रखना नही छोड़ देना है |

ऐसे ही दूसरे दार्शनिक जैसे दिकारते , लेबेनित्ज़ , अरस्तु सबने अपनी बच्चो को लावारिस छोड़ा था |

ऐसे छोड़े हुए बच्चो को रखने के लिए यूरोप के राजाओ ने या सरकारों ने कुछ संस्थाए खड़ी किया जिनको CONVENT कहा जाता है | CONVENT का माने लावारिस बच्चो का स्कूल | CONVENT में पड़ने वाले बच्चो को माँ बाप का अहसास कराने के लिए उहाँ पर पड़ने वाले जो अध्याप्पक होते है उनको मादर फादर, ब्रादर और सिस्टर कहते है |

http://www.youtube.com/watch?v=AAlwAf-frhg

Source : https://www.facebook.com/photo.php?fbid=743162379031445&set=a.308915605789460.93329.308901045790916&type=1



Friday, October 18, 2013

भारत सरकार अथवा उसके सम्बन्धित विभागों के कानों पर जूँ तक न रेंगी।



११ वैज्ञानिक विश्लेषण 'ताजमहल से प्राप्त काष्ठ-खण्ड की रेडियो कार्बन काल- आकलन पद्धति द्वारा आयु गणना।' सामान्य पद्धति काष्ट खण्ड (लकड़ी का टुकड़) को बेन्जीन (सीई-एचई) में चार चरणबद्ध रासायनिक क्रियाओं द्वारा परिवर्तित किया जाता हैं बेन्जीन प्रतिरूप को ५ मि. ली. की काँच की शीशी में सिन्टिलेटर घोल के साथ रख देते हैं। इसकी तीव्रता को एन. बी. एस. ओक्जालिक अम्ल से संश्लेष्टित बेन्जीन के सम्बन्ध में स्थिर किया जाता है। विशेष रूप से चुने गये फोटो गुणक ट्यूब्स (जो निम्न ध्वनि स्तर से लिये जाते हैं) के साथ पिकर नाभिकीय लिक्यूमेन्ट २२० का गुणक के रूप में उपयोग किया जाता हैं इस प्रतिरूप को १०० मिनट के समयान्तराल से गिना जाता है, जिसके साथ इसका आधुनिक स्तर (एन. बी. एस. ऑक्जलिक) प्रतिरूप का पिछला भाग, इनकी गणना सिलसिलेवार की जाती है। इसकी आयु की गणना उस सामग्री से की जाती है, जो ५७३० वर्ष मूल्य की १४- सी का अर्ध आयु का प्रयोग करके प्राप्त की जाती है। एम. ए. एस. सी. ए. सुधार जो नीचे संदर्भित है, एम. ए. एस. सी. ए. के परिपत्र खण्ड १क्र. १ अगस्त १९७३, पेन्सिलवानिया विश्वसविद्यालय से लिया गया है जो कि तीन प्रयोगशालाओं द्वारा जिन्होंने सी-१४ और तरु- छल्लों द्वारा आयु की तुलना की है, रेडियो कार्बन समय माप की योग्यता पर आधारित है। प्रतिरूप १ लकड़ी का टुकड़ा जो कि ताजमहल के उत्तरी छोर परनदी के तटीय धरातल पर अवस्थित यमुना नदी की ओर उन्मुख द्वार से लिया गयां आयु १३४९ ई. + (या) - ८९ वर्ष। इस प्रकार यह सम्भावना ६७ प्रतिशत है कि प्रतिरूप आयु सन् १२७० ई. से सन् १४४८ ई. के बीच की है।


नोट : इस आयु के लिये एम. ए. एस. सी. ए. शून्य सुधार है।
प्रस्तुतकता :
इवान टी. विलियम्स
प्रध्यापक रासायन न्यूयार्क नगर
विश्वसविद्यालय ब्रुकलिन कॉलेज,
ब्रुकलिन, न्यूयार्क-११२१०
६ फरवरी १९८४ ई. भारतीय इतिहास का एक अविस्मरणीय दिन था। इस दिन जब सोकर उठने पर संसार-भर के व्यक्तियों ने उस दिन के समाचार-पत्र पर दृष्टि डाली तो मुखय पृष्ठ पर एक छोटा, परन्तु महत्वपूर्ण समाचार दिखाई दिया। इस समाचार के अनुसार ताजमहल के द्वार के एक प्रतिरूप की आयु का निर्धारण ब्रुकलिन विश्वविद्यालय के दो वैज्ञानिकों द्वारा रेडियो कार्बन पद्धति द्वारा किया गया था। इसके अनुसार उस लकड़ी की छिलपट की आयु ६२५ वर्ष थी। इस आयु में मात्र ८९ वर्ष ऊपर-नीचे होने की सम्भावना ६७ प्रतिशत विश्वास सहित व्यक्त की गई थी। इस ८९ वर्ष के सुधार के पश्चात् भी उस काष्ठ खण्ड की आयु ५३५ वर्ष से कम किसी प्रकार नहीं हो सकती थी, अर्थात् १४४८ ई.। इसी ८९ वर्ष को यदि विपरीत दिशा में घटाया जाये तो सन् १२७० ई. आता है। हमारे विषय ताजमहल के लिये सन् १२७० तथा सन् १३४९ ई. तो महत्वपूर्ण हो ही सकते हैं, परन्तु यदी हम सबसे बाद के सन् १४४८ ई. को ही सत्य मानकर विचार करें तो भी स्थिति सुस्पष्ट हो जाती है॥ यह वह सन् है (सन् १४४८ ई. ) जिसके लगभग ८० वर्ष बाद शाहजहाँ के बाबा अकबर का भी बाबा बाबर आगरा में प्रथम बार आया था। इस घटना (समाचार प्रकाशन) से यद्यपि संसार आश्चर्य चकित रह गया, परन्तु भारत सरकार अथवा उसके सम्बन्धित विभागों के कानों पर जूँ तक न रेंगी। इस समाचार पर भारत सरकार ने न तो कोई प्रतिक्रिया ही व्यक्त की और न ही स्वयं किसी प्रकार का शोध कार्य ही आरम्भ किया, जिसके आधार पर उक्त समाचार का खण्डन-मण्डन किया जा सकता अथवा ताजमहल की सही आयु का निर्धारण कियाजा सकता। यही नहीं भारत सरकार ने उन सत्य शोधार्थियों के कार्य परपूर्णतः प्रतिबन्ध भी लगा दिया जो इस कार्य को आगे बढ़ाना चाहते थे। सम्भवतः भारत सरकार का आदर्श वाक्य -सत्यमेव जयते' निरर्थक होता जा रहा है। यदि लकड़ी के एक टुकड़े की आयु बाबर के आगरा आगमन से ८० वर्ष पूर्व की है तो ताजमहल का निर्माण शाहजहाँ द्वारा किया जाना पूर्णतः संदिग्ध हो जाता है, यद्यपि मात्र एक लकड़ी का टुकड़ा ही पर्याप्त परीक्षण का आधार भी नहीं माना जा सकता है। इसके लिये अधिक सामग्री के वैज्ञानिक परीक्षण की आवश्यकता प्रबुद्ध पाठक अनुभव कर रहे होंगे। आइये देखें इस विषय में भारतीय पुरातत्व विभाग के क्या विचार हैं ? तथा उसने क्या प्रयास किये हैं ? उपरोक्त लकड़ी के भाग की आयु निर्धारित करने वालों में एक हैं श्री मारविन मिल्स, वास्तुकला के साधक तथा न्यूयार्क के वास्तुकला विद्यालय में वास्तुकला के इतिहास विषय के व्याखयाता। उनका विश्वास है कि ताजमहल की वास्तविक आयु निर्धारण के लिये कुछ अन्य परीक्षण आवश्यक हैं और उक्त परीक्षण करने के लिये वे प्रस्तुत हैं। इसी धारणा के वशीभूत होकर,  भारत सरकार से सहयोग की आशा लेकर उन्होंने एक पत्र लिखा था, जो इस प्रकार है :
डॉ. एम. एस. नागराज
अक्टूबर ३, १९८४ डायरेक्टरजनरल आर्क्यालाजिकल सर्वे ऑफ इण्डिया
नई दिल्ली-११०-००१, इण्डिया
प्रिय डॉ. नागराज, श्री रमेश चन्द्र ने श्री आर. सेनगुप्त से बात करने के पश्चात् सुझाया कि मैं आवश्यक आपसी हित के सन्दर्भ में एक पत्र आपको लिखेूं। मैं एक वास्तुकलाविद् तथा वास्तुकला इतिहासज्ञ हूं। वैज्ञानकि प्रयोग द्वारा पुरातन भवनों की आयु निर्धारण करना मेरी विशेषता है, विशेषकर उस दशा में जहाँ पर मान्य निर्माण तिथि में स्पष्टीकरण की सम्भावना रह जाती हो, यदि ऐतिहासिक स्थापत्य विश्लेषण के मानक साधनों के अनुसरण के बाद भी सन्देह रह गया हो। मैं कुछ वर्षों से ताजमहल तथा भारतीय स्थापत्य से जुड़ा रहा हूँ। ताजमहल तथा कुछ अन्य भवनों के प्रारम्भ को लेकर चल रहे कलह को ध्यान में रखते हुए मुझे ऐसा प्रतीत होता है कि मैं इस विवाद को पक्की तौरपर हल कराने में लाभदायक हो सकता हूं। मुझे इस प्रकार के कार्य के लिये आवश्यक अनुभव तथा प्रवीणता प्राप्त है। वैज्ञानकि सत्यशोधन में मैं सम्भवतः उपयोगी होऊँ। कुछ सप्ताहों में ही मैं वह फल उपलब्ध करा सकूँगा जो भारत ही नीं, संसार के लिये महत्वपूर्ण होगा। इस समय मैं स्पने स्थित कारडोवा की मस्ज़िद की इसी प्रकार कीजाँच कर रहा हूँ। मेरे सम्बन्ध इंग्लैण्ड तथा संयुक्त राष्ट्र अमरीका की पुरातात्विक समय निर्धारण करने वाली प्रयोगशालाओं से हैं और उनके साथ मैं काम करता हूँ। क्या मैं सुझाव दे सकता हूँ कि आप मेरे जनवरी १९८५ में (भारत) आने की सम्भावना पर विचार करें। मैं एक सप्ताह रुकूँगा। स्मारक (ताजमहल) को नगण्य क्षति होगी। कुछ धन का प्रश्न उपस्थिति होगा, जिस पर हम लोग विचार-विमर्श कर सकते हैं। फरवरी तक आपको आपके परिणाम प्राप्त हो जायेंगे। जांच का आधार ईंटों के नमूने होंगे जो २० स्थलों से प्रापत किये जायेंगे। प्रत्येक नमूने का आकार एक अंगुली की नोक से अधिक नहीं होगा। इसके फलस्वरूप प्राप्त आयु विश्वसनीय होगी, जिसमें दोनों ओर १०० वर्षों से भी कम के सुधार की सम्भावना होगी। थरमोल्युमिनीसेन्स विज्ञान का प्रयोग कयिा जायेगा। प्रति जाँच के लिये लकड़ी के नमूने भी लिये जा सकते हैं। सत्य ही आपका मारविन एच. मिल्स प्रतिलिपि : श्री आर. सेनगुप्त श्री रमेश चन्द उक्त पत्र मिलने पर भारत सरकार को उस पुत्री के पिता की भांति प्रसन्न हो जाना चाहिए था, जिसकी पुत्री की आयु ३० वर्ष से ऊपर हो गई हो। और जो १०-१२ वर्ष से वर ढूँढ रहा हो और अनायास एक सुन्दर सम्पन्न युवक आकर उससे उसकी कन्या का हाथ माँगे। परन्तु हा ! हन्त!! भारत सरकार का उत्तर उस मूर्ख व्यक्ति के समान था जिसमें अपनी मिथ्या कुलीनता का दम्भ कूट-कूट कर भरा हो।
उत्तर देखिये :
क्र. एफ. २३/४/८४-सी
भारत सरकार भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण जनपद,
नई दिल्ली १ नवम्बर, १९८४
प्रिय महोदय, कृपया आपके दिनांक ०३/१०/१९८४ के पत्र के सन्दर्भ में जो डा. एम. एस. नागराजराय को सम्बोधित किया गया था तथा जो ताजमहल की आयु- गणना के सम्बन्ध में था। ताजमहल की आयु अभिलेखीय लिखित साक्ष्य के आधार पर सही निर्धारित है। इसके अतिरिक्त भाभा अणु अनुसन्धान संस्थान बम्बई तथा भौतिकीय अनुसन्धान प्रयोगशाला अहमदाबाद भी इस समस्या के समाधान हेतु प्रयत्नशील हैं। अतः इस विषय पर, इस स्तर पर और अधिक जांच कराना उचित नहीं समझा गया है। फिर भी, आपका प्रस्ताव प्रशंसनीय है। भवदीय ह. (एस. पी. मुखर्जी) कृते महानिदेशक उपरोक्त दोनों पत्रों की निष्पक्ष समीक्षा, जन-हित, सत्यशोधन-हित एवं न्याय-हित में आवश्यक है। प्रथम पत्र न केवल विस्तृत एवं सभी आवश्यक सूचनाओं से परिपूर्ण है अपितु गरिमायुक्त भी है श्री मिल्स अपनीयोग्यताएं एवं अनुभव बताते हुए अपने कार्य को विस्तार से समझाते हैं। संसार की विशिष्ट प्रयोगशालाओं से अपने सम्बन्धों की चर्चा करते हुए वे भारत आकर ताजमहल की आयु निर्धारित करने का प्रस्ताव करते हैं वह यह भी स्पष्ट करते हैं कि ऐसा करना क्यों आवश्यक है ?  इसके लिये वे किसी विशेष धनराशि की मांग भी नहीं करते हें एवं ताजमहल को किसी प्रकार की हानि न होने देने का पूर्ण आश्वासन भी देते हैं। साथ ही साथ एक मास के अन्दर पूर्ण विश्वासी आयु बताने का आश्वासन भी देते हैं, जिसमें १०० वर्ष से अधिक अन्तर होने की कोई सम्भावना नहीं होगी। इस गरिमायुक्त पत्र का भारत सरकार द्वारा अत्यन्त रूखा एवं चालू उत्तर दिया गया। विभाग के अनुसार अभिलेखीय लिखित साक्ष्य के आधार पर ताजमहल की आयु के सम्बन्ध में कोई भ्रम नहीं है, जबकि इस समय संसार के हर कोने से इस आयु के सम्बन्ध में उंगली उठाई जा रही हैं। वह कौन से अभिलेखीय प्रमाण हैं ? एक प्रमाण जो विभाग ने प्रकाशित कराया है स्वयं स्वीकार करता है कि रानी को दफनाने के लिये राजा मानसिंह का महल चुना गया था। यही प्रमाण आगे (बिना महल गिराये) ताजमहल बनाने की बात भी करता हैं विभाग के एक अन्य अधिकारी श्री एम. एस. वत्स सन् १९४६ में औरंगजेब के सन् १६५२ के पत्र का प्रकाशन करते हैं जिसके अनुसार उस समय (सन् १६५२ में) न तो ताजमहल बन ही रहा था और न नया बना था, अपितु पुराना एवं जीर्ण-शीर्ण दशा में था। साथ ही इसी पत्र में विभाग ने श्री मिल्स को यह भी सूचित किया कि इस काय्र को बम्बई एवं अहमदाबाद की प्रयोगशालाएँ कर रही हैं। बहुत खूब ! जब ताजमहल की सही आयु प्रमाणित है तो यह प्रयोगशालाएँ क्या कर रही हैं ? भारत सरकार को यह तो पूर्ण अधिकार है कि कोई गम्भीर एवं उत्तरदायित्वपूर्ण कार्य किसी विदेशी से न कराके स्वयं ही कराए, परन्तु सरकार को यह अधिकार नहीं है कि वह यह झूठ बोले कि इस विषय पर कोई कलह नहीं हैं अभी कुछ प्रश्न और हैं जो जनता को सरकार से पूछने चाहिए। श्री मारविन मिल्स फरवरी १९८५ तक परिणाम घोषित करने का दावा कर रहे थे। बम्बई एवं अहमदाबाद की प्रयोगशालाएँ नवम्बर १९८३ (पता नहीं कितने पहले) से यह कार्य कर रही हें। पिछले १४ साल में परिणाम सामने क्यों नहीं आ सके ? क्या इन प्रयोगशालाओं के पास वह क्षमता है, जो क्षमता इंग्लैण्ड एवं अमरीका की उन प्रयोगशालाअें के पास है जिनके सहयोग सेश्री मिल्स यह परीक्षण करने वाले थे क्या हमारी प्रयोगशालाएं वैज्ञानिक दृष्टि से इतनी विकसित तथा तकनीकी दृष्टि से इतनी आध्ुानकि हो चुकी हैं, जो इस गुरुतर कार्य को कर सकें ? क्या हमारे वैज्ञानकि ज्ञान, योग्यता एवं अनुभव में श्री मिल्स के समकक्ष हो गये हैं ? पाठकों ! यह मामला कोई रक्षा उत्पादन, तटीय सुरक्षा अथवा भारत की सम्प्रभुता से जुड़ा नहीं था जो हमें किसी विदेशी शोधार्थी की राय लेने में हानि होने की सम्भावना प्रतीत होती हो। यह तो मात्र ज्ञान, शोध एवं सत्यान्वेषण की बात थी। श्री मिल्स के साथ कार्य करके हमारे वेज्ञानकि बहुत कुछ सीख सकते थे। श्री मिल्स से इस प्रकार का समझौता भी किया जा सकता था। शिक्षा एवं संस्कृति तथा विज्ञान विषयों पर इस देश में अनेक कार्यशालाओं एवं सेमिनारों का आयोजन होता रहता है, जिसमें विदेशी विद्वान् भी भाग लेते हैं। क्या ही अच्छा हो कि पुरातन भवनों की आयु निर्धारण पद्धति पर एक अच्छी अन्तर्राष्टीय कार्यशाला का आयोजन पुरातत्व विभाग के तत्वाधान में भारत सरकार करे। परन्तु ऐसा होगा नहीं, क्योंकि भारत सरकार एवं पुरातत्व विभाग को ताजमहल की वास्तविक आयु का भली-भांति ज्ञान हैं आप कहेंगे कैसे ? तो उत्तर सुनिये। ताजमहल के बन्द एवं प्रच्छन्न भाग चाहे जनता से छिपे हों, परन्तु विभाग के अधिकारियों को भली-भांति मालूम है कि उसके अन्दर शाहजहाँ ने क्या छिपाया था ? रानी का शव छः मास से अधिक समय तक बाग में रखा रहां उतने दिनों तक भवन में क्या-क्या तोड़-फोड़ हुई इसके सारे प्रमाण उनकी नजरों के सामने हैं। रानी को कब चुपचाप दफना दिया गया कि उसकी तारीख भी किसी को बताई नहीं गईं शायद महीनों या वर्षों बाद घोषित किया गया कि उसे तो दफना दिया गया था। अब पाठकगण समझ ही गये होंगे कि जिसके पास नकली हीरा होता है, वह जानते हुए किसी विशेषज्ञ के पास जाँच कराए जाने का साहस नहीं करता है, चाहे नाटक कितना ही करता रहे।
Source : https://www.facebook.com/neerajsaini98/posts/10200115484808784

Tuesday, October 15, 2013

हमारा कैलाश मानसरोवर चीन के कब्जे मे क्यू है? जानिए !!!

हमारा कैलाश मानसरोवर चीन के कब्जे मे क्यू है? जानिए !!!


1966.. के पाकिस्तान के भारत पर होने वाले हमले से पूर्व चीन ने भारत पर हमला किया था 1962 ने !

और ये बहुत दुर्भाग्यपूर्ण हमला था ! इसको इसलिए दुर्भाग्यपूर्ण माना जाता है कि उस समय V K Krishna Menon जैसा नेता भारत का रक्षा मंत्री था !!

दुर्भाग्यपूर्ण वाली बात ये है कि

और ये किस तरह के अजीब किसम के आदमी थे !आप इस बात से अंदाजा लगा सकते है ! 1960 -61 मे एक बार संसद मे बहस हो रही थी तो वीके कृशन ने खड़े होकर अपनी तरफ से एक प्रस्ताव रखा !

प्रस्ताव क्या रखा ??

उन्होने कहा देखो जी पाकिस्तान ने तो 1948 मे हमसे समझोता कर लिया कि वह आगे से कभी हम पर हमला नहीं करेगा ! और दुनिया के आजू-बाजू मे और कोई हमारा दुश्मन है नहीं ! तो हमे बार्डर पर सेना रखने कि क्या जरूरत है सेना हटा देनी चाहिए ! ऐसे उल्टी बुद्धि के आदमी थे vk krishan menon ! और ये बात वो कहीं साधारण सी बैठक मे नहीं लोकसभा मे खड़े होकर बोल रहे थे ! कि ये सेना हमको हटा देनी चाहिए ! इसकी जरूरत नहीं है !!

तो कुछ सांसदो मे सवाल किया कि अगर भविष्य मे किसी देश ने हमला कर दिया तो कया करेंगे ???? अभी तो आप बोल रहे है कि सेना हटा लो ! पर अमरजनसी जरूरत पड़ गई तो कया करेंगे ???
तो उन्होने ने कहा इसके लिए पुलिस काफी है ! उसी से काम चला लेगे ! ऐसा जवाब vk krishann manon ने दिया !!

ऐसी ही एक बार कैबनेट कि मीटिंग थी प्रधान मंत्री और बाकी कुछ मंत्री माजूद थे ! vk kirshan ने एक प्रस्ताव फिर लाया और कहा ! देखो जी हमने सीमा से सेना तो हटा ली है ! अगर सेना नहीं रखनी तो पैसे खर्च करने कि क्या जरूरत है ! तो बजट मे से सेना का खर्च भी कम कर दिया !

और तो और एक और मूर्खता वाला काम किया ! उन्होने कहा अगर सेना ही नहीं है तो ये बंब,बंदुके
बनाने की क्या जरूरत है ! तो गोला बारूद बनाने वाले कारखानो मे उत्पादन पर रोक लगा दी और वहाँ काफी बनाने के प्याले चाय बनाने के प्याले आदि का काम शुरू करवा दिया !!

और उनको जो इस तरह के बयान आते थे तो चीन को लगा कि ये तो बहुत मूर्ख आदमी है ! कहता है सेना को हटा लो ! सेना का खर्चा कम कर दो ! गोला बारूद बनाना बंद कर दो ! और खुद दुनिया भर मे घूमता रहता है ! कभी सेना के लोगो के पास न जाना ! सेना के साथ को meeting न करना ! इस तरह के काम करते रहते थे !

तो चीन को मौका मिल गया ! और चीन एक मौका ये भी मिल गया !चीन को लगा की vk kirashan तो प्रधानमंत्री (नेहरू ) के आदमी है !! तो शायद नेहरू की भी यही मान्यता होगी ! क्यूंकि vk krishan नेहरू का खास दोस्त था तो नेहरू ने उसको रक्षा मंत्री बना दिया था ! वरना vk krishan कोई बड़ा नेता नहीं था देशा का ! जनता मे कोई उनका प्रभाव नहीं था ! बस नेहरू की दोस्ती ने उनको रक्षा मंत्री बना दिया !!

और वो हमेशा जो भाषण देते थे !लंबा भाषण देते थे 3 घंटे 4 घंटे ! लेकिन आप उनके भाषण का सिर पैर नहीं निकाल सकते थे कि उन्होने बोला क्या ! ऐसे मूर्ख व्यक्ति थे vk krishan menon !

तो ये सब मूर्खता देख कर चीन ने भारत पर हमला किया और भारत का एक इलाका था aksai chin !
वहाँ चीन ने पूरी ताकत से हमला किया ! और हालात क्या थे आप जानते है ! सेना को वापिस बुला लिया था पहले ही !! सेना का बजट कम था ! गोला बारूद के कारखाने बंद थे !! तो चीनी सैनिको ने बहुत मनमानी कि उस askai chin के क्षेत्र मे !!

और जो सबसे बुरा काम किया ! चीनी सैनिको ने सैंकड़ों महिलाओ के साथ जमकर बलत्कार किए !! वहाँ हजारो युवको कि ह्त्या करी ! askai chin का जो इलाका है वहाँ सुविधाए कुछ ऐसे है कि लोग वैसे ही अपना जीवन मुश्किल से जी पाते है ! रोज का जीवन चलाना ही उनको लिए किसी युद्ध से कम नहीं होता ऊपर से चीन का हमला !!

तो वहाँ के लोगो ने उस समय बहुत बहुत दुख झेला ! और वहाँ हमारी सेना नहीं थी ! तो वहाँ लोगो के मन हमारी सरकार के विरुद्ध एक विद्रोह की भावना उतपन हुई ! और वो आज भी झलकती है ! आज भी आप वहाँ जाये तो वहाँ लोग ये सवाल करते है कि जब चीन ने हमला किया था तो आपकी सेना कहाँ थी ! और सच है हम लोगो के पास इसका कोई जवाब नहीं ! तो उनमे एक अलगाव कि भावना उतपन हुई जो अलग क्षेत्र की मांग करने लगे !!!

तो हमले मे चीन ने हमारी 72 हजार वर्ग मील जमीन पर कब्जा कर लिया ! और हमारा तीर्थ स्थान कैलाश मानसरोवर भी चीन के कब्जे मे चला गया ! और बहुत शर्म कि बात है आज हमे अपने तीर्थ स्थान पर जाने के लिए चीन से आज्ञा लेनी पड़ती है ! और इसके जिम्मेदार सिर्फ और सिर्फ नेहरू और vk krishan menon जैसे घटिया और मूर्ख किसम के नेता थे !!!

तो युद्ध के बाद एक बार संसद मे भारत-चीन युद्ध पर चर्चा हुई ! सभी सांसदो के मुह से जो एक स्वर सुनाई दे रहा था ! वो यही था !कि किसी भी तरह चीन के पास गई 72 हजार वर्ग मील जमीन और हमारा तीर्थ स्थान कैलाश मानसरोवर वापिस आना चाहिए !

महावीर त्यागी जी जो उस समय के बहुत महान नेता थे !उन्होने ने सीधा नेहरू को कहा कि आप ही थे जिनहोने सेना हटाई ! सेना का बजट कम किया ! गोला बारूद बनाने के कारखाने बंद करवाये! आप ही के लोग विदेशो मे घूमा करते थे ! और आपकी इन गलितयो ने चीन को मौका मिला और उसमे हमला किया और हमारी 72 हजार वर्ग मील जमीन पर कब्जा कर लिया !!

अब आप ही बताए कि आप ये 72 हजार वर्ग मील जमीन को कब वापिस ला रहे है ?????!

तो इस हरामखोर नेहरू का जवाब सुनिए ! नेहरू ने कहा फिर क्या हुआ अगर वो जमीन चली गई ! चली गई तो चली गई ! वैसे भी बंजर जमीन थी घास का टुकड़ा नहीं उगता था ! ऐसी जमीन के लिए क्या चिंता करना !!

तो त्यागी जी ने बहुत ही बढ़िया जवाब दिया ! त्यागी जी ने कहा नेहरू जी उगता तो आपके सिर पर भी कुछ नहीं ! तो इसको भी काट कर चीन को दे दो ! और इत्फ़ाक से नेहरू उस समय पूरी तरह गंजा हो चुका था !!

तो दोस्तो इस नेहरू ने धरती माँ को एक जमीन का टुकड़ा मान लिया ! और अपनी गलती मानने के बजाय ! उल्टा ब्यान दे रहा है जमीन चली गई तो चली गई !

इससे ज्यादा घटिया बात कुछ और नहीं हो सकती ! !

और लानत है भारत की जनता पर आज चीन युद्ध के 50 साल बाद भी नेहरू परिवार के वंशज देश चला रहे हैं !! हमे दिन रात लूट रहे हैं ! हमे मूर्ख बना रेह हैं !

VK krishan menon थे तो भारत के रक्षा मंत्री लेकिन हमेशा विदेश घूमते रहते थे ! उनको हिदुस्तान रहना अच्छा ही नहीं लगता था आमेरिका अच्छा लगता था !फ्रांस अच्छा लगता था !ब्रिटेन अच्छा लगता था ! नुयोर्क उनको हमेशा अच्छा लगता था ! उनकी तो मजबूरी थी कि भारत मे पैदा हो गए थे ! लेकिन हमेशा उनको विदेश रहना और वहाँ घूमना ही अच्छा लगता था ! और जो काम उनको रक्षा मंत्री का सौंपा गया था उसको छोड़ वो बाकी सब काम करते थे ! विदेश मे घूमते रहना !कभी किसी देश कभी किसी देश मे जाकर कूट नीति ब्यान दे देना ! !


Source : 
https://www.facebook.com/photo.php?fbid=680596788626950&set=a.247256761960957.66068.247253911961242&type=1 


भारत में Globalisation


भारत में Globalization

1991 में भारत में Globalization लाया गया .....क्या कह कर की इससे हमारे देश का Export बढेगा और भारत में विदेशी कंपनी आएगी तो कंपनियों में Competition होगा .... पर ये नहीं बताया गया की Competition के
नाम पर ये विदेशी कंपनी भारत के स्वदेशी कंपनी को निगल लेगी .....

South Korea पूरा बर्बाद हो चूका है Globalization के कारण ....उसे अपने National Asset को गिरवी रखना पड़ा है IMF के पास ....

Indonesia भी बर्बाद हो चूका है ...किसी उसे अब फिर से उठने में 20 साल लगेगा ....

Thailand देश तो इतना बर्बाद हो गया की ...उनके पास कुछ नहीं बचा IMF को देने के लिए ...जो उन्होंने ने IMF से कर्ज लिया था .....उनको तो ये करना पढ़ा की उन्हें अपने देश में Prostitution / वैश्यावृति Legal Business करना पड़ा ...की महिला अपने जिस्म को बेच कर कुछ डॉलर कमा सके . .




Brazil का एक ऐसा नेता है जिसने ...अपने देश में Be Brazilian , Buy Brazilian का नारा दिया ...और सारी American कंपनी को लात मार के भगा दी ..

आखिर बोला क्या ब्राजील के प्रधान मंत्री ने ?

उसने बोला :  कौन कहता है IMF और World Bank की पालिसी पर चल कर ही भला होगा l

उसने बोला की जाओ नहीं देता तुम्हारा कर्जा क्या कर लोगे ,,,, जितना तुमने कर्जा दिया था उसका तीन गुना मेरा देश पहले ही वापस चूका है ,, तो कर्जे में तो तुम हो ,,मेरा वापस करो l उसने धमकी दी नहीं दूंगा कोई कर्जा जो उखाड़ना हो उखाड़ लो ,, युद्ध करना है तो आओ युद्ध भी हो जाएगा l

Source : https://www.facebook.com/neerajsaini98/posts/10200097398236631

Tuesday, January 22, 2013

खतरनाक हैं एल्युमिनियम के बर्तन

 
हमारे देश में एल्युमिनियम के बर्तन 100-200 साल पहले ही ही आये है । उससे पहले धातुओं में पीतल, काँसा, चाँदी के बर्तन ही चला करते थे और बाकी मिट्टी के बर्तन चलते थे । अंग्रेजो ने जेलों में कैदिओं के लिए एल्युमिनिय के बर्तन शुरू किए क्योंकि उसमें से धीरे धीरे जहर हमारे शारीर में जाता है । एल्युमिनिय के बर्तन के उपयोग से कई तरह के गंभीर रोग होते है । जैसे अस्थमा, बात रोग, टी बी, शुगर, दमा आदि । पुराने समय में काँसा और पीतल के बर्तन होते थे जो जो स्वास्थ के लिए अच्छे मने जाते है । यदि सम्भव हो तो वही बर्तन फिर से ले कर आयें । हमारे पुराने वैज्ञानिकों को मालूम था की एल्युमिनिय बोक्साईट से बनता है और भारत में इसकी भरपूर खदाने हैं, फिर भी उन्होंने एल्युमिनियम के बर्तन नहीं बनाये क्योंकि यह भोजन बनाने और खाना खाने के लिए सबसे घटिया धातु है । इससे अस्थमा, टी बी, दमा, बातरोग में बढावा मिलता है ।
जिस पात्र में खाना पकाया जाता है, उसके तत्व खाने के साथ शरीर मे चले जाते है और क्योकि ऐलुमिनियम भारी धातू हैं इसलिये शरीर का ऐसक्रिटा सिस्टम इसको बाहर नहीं निकल पाता। ये अंदर ही इकट्ठा होता रहता हैं और बाद में टीबी और किडनी फ़ेल होने का कारण बनता हैं। आंकड़ों से पता चलता है जब से अंग्रेजों ने एल्युमिनियम के बर्तन भारत में भेजे हैं पेट के रोगों में बढ़ोत्तरी हुई है।

अंग्रेजों ने भगत सिंह, उधम सिंह, सुभाष चंद्र बोस जैसे जितने भी क्रांतिकारियों को अंग्रेजो ने जेल में डाला। उन सबको जानबुझ कर ऐलुमिनियम के पात्रो में खाना दिया जाता था, ताकि वे जल्दी मर जायें।

बड़े दुख की बात है आजादी के 64 साल बाद भी बाक़ी क़ानूनों की तरह ये कानून भी नहीं बदला नहीं गया हैं। आज भी देश की जेलो मे कैदियो को ऐलुमिनियम के पात्रो मे खाना दिया जाता है।

लेकिन आज हमने अपनी इच्छा से अपने शौक से इस प्रैशर कुकर को घर लाकर अपने मरने का इंतजाम खुद कर लिया हैं।

इसलिए एल्युमिनियम के बर्तनों का उपयोग बन्द करें ।

अधिक जानकारी के लिए ये विडियो देखे :
http://www.youtube.com/watch?v=EwSr2TsZMXc

Saturday, January 19, 2013

रिफाइन तेल की कहानी

आज से 50 साल पहले तो कोई रिफाइन तेल के बारे में जानता नहीं था, ये पिछले 20 -25 वर्षों से हमारे देश में आया है | कुछ विदेशी कंपनियों और भारतीय कंपनियाँ इस धंधे में लगी हुई हैं | इन्होने चक्कर चलाया और टेलीविजन के माध्यम से जम कर प्रचार किया लेकिन लोगों ने माना नहीं इनकी बात को, तब इन्होने डोक्टरों के माध्यम से कहलवाना शुरू किया | डोक्टरों ने अपने प्रेस्क्रिप्सन में रिफाइन तेल लिखना शुरू किया कि तेल खाना तो सफोला का खाना या सनफ्लावर का खाना, ये नहीं कहते कि तेल, सरसों का खाओ या मूंगफली का खाओ, अब क्यों, आप सब समझदार हैं समझ सकते हैं |

ये रिफाइन तेल बनता कैसे हैं ? मैंने देखा है और आप भी कभी देख लें तो बात समझ जायेंगे | किसी भी तेल को रिफाइन करने में 6 से 7 केमिकल का प्रयोग किया जाता है और डबल रिफाइन करने में ये संख्या 12 -13 हो जाती है | ये सब केमिकल मनुष्य के द्वारा बनाये हुए हैं प्रयोगशाला में, भगवान का बनाया हुआ एक भी केमिकल इस्तेमाल नहीं होता, भगवान का बनाया मतलब प्रकृति का दिया हुआ जिसे हम ओरगेनिक कहते हैं | तेल को साफ़ करने के लिए जितने केमिकल इस्तेमाल किये जाते हैं सब Inorganic हैं और Inorganic केमिकल ही दुनिया में जहर बनाते हैं और उनका combination जहर के तरफ ही ले जाता है | इसलिए रिफाइन तेल, डबल रिफाइन तेल गलती से भी न खाएं | फिर आप कहेंगे कि, क्या खाएं ? तो आप शुद्ध तेल खाइए, सरसों का, मूंगफली का, तीसी का, या नारियल का | अब आप कहेंगे कि शुद्ध तेल में बास बहुत आती है और दूसरा कि शुद्ध तेल बहुत चिपचिपा होता है | हमलोगों ने जब शुद्ध तेल पर काम किया या एक तरह से कहे कि रिसर्च किया तो हमें पता चला कि तेल का चिपचिपापन उसका सबसे महत्वपूर्ण घटक है | तेल में से जैसे ही चिपचिपापन निकाला जाता है तो पता चला कि ये तो तेल ही नहीं रहा, फिर हमने देखा कि तेल में जो बास आ रही है वो उसका प्रोटीन कंटेंट है, शुद्ध तेल में प्रोटीन बहुत है, दालों में ईश्वर का दिया हुआ प्रोटीन सबसे ज्यादा है, दालों के बाद जो सबसे ज्यादा प्रोटीन है वो तेलों में ही है, तो तेलों में जो बास आप पाते हैं वो उसका Organic content है प्रोटीन के लिए | 4 -5 तरह के प्रोटीन हैं सभी तेलों में, आप जैसे ही तेल की बास निकालेंगे उसका प्रोटीन वाला घटक गायब हो जाता है और चिपचिपापन निकाल दिया तो उसका Fatty Acid गायब | अब ये दोनों ही चीजें निकल गयी तो वो तेल नहीं पानी है, जहर मिला हुआ पानी | और ऐसे रिफाइन तेल के खाने से कई प्रकार की बीमारियाँ होती हैं, घुटने दुखना, कमर दुखना, हड्डियों में दर्द, ये तो छोटी बीमारियाँ हैं, सबसे खतरनाक बीमारी है, हृदयघात (Heart Attack), पैरालिसिस, ब्रेन का डैमेज हो जाना, आदि, आदि | जिन-जिन घरों में पुरे मनोयोग से रिफाइन तेल खाया जाता है उन्ही घरों में ये समस्या आप पाएंगे, अभी तो मैंने देखा है कि जिनके यहाँ रिफाइन तेल इस्तेमाल हो रहा है उन्ही के यहाँ Heart Blockage और Heart Attack की समस्याएं हो रही है |

जब हमने सफोला का तेल लेबोरेटरी में टेस्ट किया, सूरजमुखी का तेल, अलग-अलग ब्रांड का टेस्ट किया तो AIIMS के भी कई डोक्टरों की रूचि इसमें पैदा हुई तो उन्होंने भी इसपर काम किया और उन डोक्टरों ने जो कुछ भी बताया उसको मैं एक लाइन में बताता हूँ क्योंकि वो रिपोर्ट काफी मोटी है और सब का जिक्र करना मुश्किल है, उन्होंने कहा "तेल में से जैसे ही आप चिपचिपापन निकालेंगे, बास को निकालेंगे तो वो तेल ही नहीं रहता, तेल के सारे महत्वपूर्ण घटक निकल जाते हैं और डबल रिफाइन में कुछ भी नहीं रहता, वो छूँछ बच जाता है, और उसी को हम खा रहे हैं तो तेल के माध्यम से जो कुछ पौष्टिकता हमें मिलनी चाहिए वो मिल नहीं रहा है |" आप बोलेंगे कि तेल के माध्यम से हमें क्या मिल रहा ? मैं बता दूँ कि हमको शुद्ध तेल से मिलता है HDL (High Density Lipoprotin), ये तेलों से ही आता है हमारे शरीर में, वैसे तो ये लीवर में बनता है लेकिन शुद्ध तेल खाएं तब | तो आप शुद्ध तेल खाएं तो आपका HDL अच्छा रहेगा और जीवन भर ह्रदय रोगों की सम्भावना से आप दूर रहेंगे |

अभी भारत के बाजार में सबसे ज्यादा विदेशी तेल बिक रहा है | मलेशिया नामक एक छोटा सा देश है हमारे पड़ोस में, वहां का एक तेल है जिसे पामोलिन तेल कहा जाता है, हम उसे पाम तेल के नाम से जानते हैं, वो अभी भारत के बाजार में सबसे ज्यादा बिक रहा है, एक-दो टन नहीं, लाखो-करोड़ों टन भारत आ रहा है और अन्य तेलों में मिलावट कर के भारत के बाजार में बेचा जा रहा है | 7 -8 वर्ष पहले भारत में ऐसा कानून था कि पाम तेल किसी दुसरे तेल में मिला के नहीं बेचा जा सकता था लेकिन GATT समझौता और WTO के दबाव में अब कानून ऐसा है कि पाम तेल किसी भी तेल में मिला के बेचा जा सकता है | भारत के बाजार से आप किसी भी नाम का डब्बा बंद तेल ले आइये, रिफाइन तेल और डबल रिफाइन तेल के नाम से जो भी तेल बाजार में मिल रहा है वो पामोलिन तेल है | और जो पाम तेल खायेगा, मैं स्टाम्प पेपर पर लिख कर देने को तैयार हूँ कि वो ह्रदय सम्बन्धी बिमारियों से मरेगा | क्योंकि पाम तेल के बारे में सारी दुनिया के रिसर्च बताते हैं कि पाम तेल में सबसे ज्यादा ट्रांस-फैट है और ट्रांस-फैट वो फैट हैं जो शरीर में कभी dissolve नहीं होते हैं, किसी भी तापमान पर dissolve नहीं होते और ट्रांस फैट जब शरीर में dissolve नहीं होता है तो वो बढ़ता जाता है और तभी हृदयघात होता है, ब्रेन हैमरेज होता है और आदमी पैरालिसिस का शिकार होता है, डाईबिटिज होता है, ब्लड प्रेशर की शिकायत होती है |


Friday, January 18, 2013

सियाचीन में भारतीय सैनिक

20 डिग्री में हमें ठंड लगनें लगती है..
16 डिग्री में हम गर्म कपड़े पहनते हैं..
12 डिग्री में हम मफलर आदी लगाते हैं..
8 डिग्री में हम उसक...े बाद भी कंपनें लगते हैं..
4/5 डिग्री में रजाई से बाहर नहीं निकलते..
... 1/2 डिग्री में घरों में अलाव जलनें लगते हैं..
0 डिग्री पर पानीं जम जाता है..
-1/2 डिग्री पर हमारी जबान लड़खड़ानें लगती है..
-5/8 डिग्री पर ...
-10/12 डिग्री पर...
-15/18 डिग्री पर सोचिये...
-40 डिग्री पर सियाचीन में भारतीय सैनिक भारत की सीमाओं की रक्षा करते हैं,, पूरी मुस्तैदी के साथ 7-12 किलों की बंदूक और करीब 20 किलो की रसद अपनें कंधों पर उठाये... घुटनें तक बर्फ में -
ताकी हम अपनीं स्वतंत्रता का आनंद उठा सकें..
ताकी हम अपनें परिवारों के साथ क्रिकेट मैच का आनंद उठा सकें..
ताकी हमारे बच्चे शांती के साथ स्कूल जा सके..
ताकी हम पिकनिक मना सकें.......!!
शेयर करे मित्रो ताकि हर हिन्दुस्तानी जान सके ....जय माँ भारती ..
जय हिन्द
 
Source : https://www.facebook.com/EkAurInqalab