Friday, October 18, 2013

भारत सरकार अथवा उसके सम्बन्धित विभागों के कानों पर जूँ तक न रेंगी।



११ वैज्ञानिक विश्लेषण 'ताजमहल से प्राप्त काष्ठ-खण्ड की रेडियो कार्बन काल- आकलन पद्धति द्वारा आयु गणना।' सामान्य पद्धति काष्ट खण्ड (लकड़ी का टुकड़) को बेन्जीन (सीई-एचई) में चार चरणबद्ध रासायनिक क्रियाओं द्वारा परिवर्तित किया जाता हैं बेन्जीन प्रतिरूप को ५ मि. ली. की काँच की शीशी में सिन्टिलेटर घोल के साथ रख देते हैं। इसकी तीव्रता को एन. बी. एस. ओक्जालिक अम्ल से संश्लेष्टित बेन्जीन के सम्बन्ध में स्थिर किया जाता है। विशेष रूप से चुने गये फोटो गुणक ट्यूब्स (जो निम्न ध्वनि स्तर से लिये जाते हैं) के साथ पिकर नाभिकीय लिक्यूमेन्ट २२० का गुणक के रूप में उपयोग किया जाता हैं इस प्रतिरूप को १०० मिनट के समयान्तराल से गिना जाता है, जिसके साथ इसका आधुनिक स्तर (एन. बी. एस. ऑक्जलिक) प्रतिरूप का पिछला भाग, इनकी गणना सिलसिलेवार की जाती है। इसकी आयु की गणना उस सामग्री से की जाती है, जो ५७३० वर्ष मूल्य की १४- सी का अर्ध आयु का प्रयोग करके प्राप्त की जाती है। एम. ए. एस. सी. ए. सुधार जो नीचे संदर्भित है, एम. ए. एस. सी. ए. के परिपत्र खण्ड १क्र. १ अगस्त १९७३, पेन्सिलवानिया विश्वसविद्यालय से लिया गया है जो कि तीन प्रयोगशालाओं द्वारा जिन्होंने सी-१४ और तरु- छल्लों द्वारा आयु की तुलना की है, रेडियो कार्बन समय माप की योग्यता पर आधारित है। प्रतिरूप १ लकड़ी का टुकड़ा जो कि ताजमहल के उत्तरी छोर परनदी के तटीय धरातल पर अवस्थित यमुना नदी की ओर उन्मुख द्वार से लिया गयां आयु १३४९ ई. + (या) - ८९ वर्ष। इस प्रकार यह सम्भावना ६७ प्रतिशत है कि प्रतिरूप आयु सन् १२७० ई. से सन् १४४८ ई. के बीच की है।


नोट : इस आयु के लिये एम. ए. एस. सी. ए. शून्य सुधार है।
प्रस्तुतकता :
इवान टी. विलियम्स
प्रध्यापक रासायन न्यूयार्क नगर
विश्वसविद्यालय ब्रुकलिन कॉलेज,
ब्रुकलिन, न्यूयार्क-११२१०
६ फरवरी १९८४ ई. भारतीय इतिहास का एक अविस्मरणीय दिन था। इस दिन जब सोकर उठने पर संसार-भर के व्यक्तियों ने उस दिन के समाचार-पत्र पर दृष्टि डाली तो मुखय पृष्ठ पर एक छोटा, परन्तु महत्वपूर्ण समाचार दिखाई दिया। इस समाचार के अनुसार ताजमहल के द्वार के एक प्रतिरूप की आयु का निर्धारण ब्रुकलिन विश्वविद्यालय के दो वैज्ञानिकों द्वारा रेडियो कार्बन पद्धति द्वारा किया गया था। इसके अनुसार उस लकड़ी की छिलपट की आयु ६२५ वर्ष थी। इस आयु में मात्र ८९ वर्ष ऊपर-नीचे होने की सम्भावना ६७ प्रतिशत विश्वास सहित व्यक्त की गई थी। इस ८९ वर्ष के सुधार के पश्चात् भी उस काष्ठ खण्ड की आयु ५३५ वर्ष से कम किसी प्रकार नहीं हो सकती थी, अर्थात् १४४८ ई.। इसी ८९ वर्ष को यदि विपरीत दिशा में घटाया जाये तो सन् १२७० ई. आता है। हमारे विषय ताजमहल के लिये सन् १२७० तथा सन् १३४९ ई. तो महत्वपूर्ण हो ही सकते हैं, परन्तु यदी हम सबसे बाद के सन् १४४८ ई. को ही सत्य मानकर विचार करें तो भी स्थिति सुस्पष्ट हो जाती है॥ यह वह सन् है (सन् १४४८ ई. ) जिसके लगभग ८० वर्ष बाद शाहजहाँ के बाबा अकबर का भी बाबा बाबर आगरा में प्रथम बार आया था। इस घटना (समाचार प्रकाशन) से यद्यपि संसार आश्चर्य चकित रह गया, परन्तु भारत सरकार अथवा उसके सम्बन्धित विभागों के कानों पर जूँ तक न रेंगी। इस समाचार पर भारत सरकार ने न तो कोई प्रतिक्रिया ही व्यक्त की और न ही स्वयं किसी प्रकार का शोध कार्य ही आरम्भ किया, जिसके आधार पर उक्त समाचार का खण्डन-मण्डन किया जा सकता अथवा ताजमहल की सही आयु का निर्धारण कियाजा सकता। यही नहीं भारत सरकार ने उन सत्य शोधार्थियों के कार्य परपूर्णतः प्रतिबन्ध भी लगा दिया जो इस कार्य को आगे बढ़ाना चाहते थे। सम्भवतः भारत सरकार का आदर्श वाक्य -सत्यमेव जयते' निरर्थक होता जा रहा है। यदि लकड़ी के एक टुकड़े की आयु बाबर के आगरा आगमन से ८० वर्ष पूर्व की है तो ताजमहल का निर्माण शाहजहाँ द्वारा किया जाना पूर्णतः संदिग्ध हो जाता है, यद्यपि मात्र एक लकड़ी का टुकड़ा ही पर्याप्त परीक्षण का आधार भी नहीं माना जा सकता है। इसके लिये अधिक सामग्री के वैज्ञानिक परीक्षण की आवश्यकता प्रबुद्ध पाठक अनुभव कर रहे होंगे। आइये देखें इस विषय में भारतीय पुरातत्व विभाग के क्या विचार हैं ? तथा उसने क्या प्रयास किये हैं ? उपरोक्त लकड़ी के भाग की आयु निर्धारित करने वालों में एक हैं श्री मारविन मिल्स, वास्तुकला के साधक तथा न्यूयार्क के वास्तुकला विद्यालय में वास्तुकला के इतिहास विषय के व्याखयाता। उनका विश्वास है कि ताजमहल की वास्तविक आयु निर्धारण के लिये कुछ अन्य परीक्षण आवश्यक हैं और उक्त परीक्षण करने के लिये वे प्रस्तुत हैं। इसी धारणा के वशीभूत होकर,  भारत सरकार से सहयोग की आशा लेकर उन्होंने एक पत्र लिखा था, जो इस प्रकार है :
डॉ. एम. एस. नागराज
अक्टूबर ३, १९८४ डायरेक्टरजनरल आर्क्यालाजिकल सर्वे ऑफ इण्डिया
नई दिल्ली-११०-००१, इण्डिया
प्रिय डॉ. नागराज, श्री रमेश चन्द्र ने श्री आर. सेनगुप्त से बात करने के पश्चात् सुझाया कि मैं आवश्यक आपसी हित के सन्दर्भ में एक पत्र आपको लिखेूं। मैं एक वास्तुकलाविद् तथा वास्तुकला इतिहासज्ञ हूं। वैज्ञानकि प्रयोग द्वारा पुरातन भवनों की आयु निर्धारण करना मेरी विशेषता है, विशेषकर उस दशा में जहाँ पर मान्य निर्माण तिथि में स्पष्टीकरण की सम्भावना रह जाती हो, यदि ऐतिहासिक स्थापत्य विश्लेषण के मानक साधनों के अनुसरण के बाद भी सन्देह रह गया हो। मैं कुछ वर्षों से ताजमहल तथा भारतीय स्थापत्य से जुड़ा रहा हूँ। ताजमहल तथा कुछ अन्य भवनों के प्रारम्भ को लेकर चल रहे कलह को ध्यान में रखते हुए मुझे ऐसा प्रतीत होता है कि मैं इस विवाद को पक्की तौरपर हल कराने में लाभदायक हो सकता हूं। मुझे इस प्रकार के कार्य के लिये आवश्यक अनुभव तथा प्रवीणता प्राप्त है। वैज्ञानकि सत्यशोधन में मैं सम्भवतः उपयोगी होऊँ। कुछ सप्ताहों में ही मैं वह फल उपलब्ध करा सकूँगा जो भारत ही नीं, संसार के लिये महत्वपूर्ण होगा। इस समय मैं स्पने स्थित कारडोवा की मस्ज़िद की इसी प्रकार कीजाँच कर रहा हूँ। मेरे सम्बन्ध इंग्लैण्ड तथा संयुक्त राष्ट्र अमरीका की पुरातात्विक समय निर्धारण करने वाली प्रयोगशालाओं से हैं और उनके साथ मैं काम करता हूँ। क्या मैं सुझाव दे सकता हूँ कि आप मेरे जनवरी १९८५ में (भारत) आने की सम्भावना पर विचार करें। मैं एक सप्ताह रुकूँगा। स्मारक (ताजमहल) को नगण्य क्षति होगी। कुछ धन का प्रश्न उपस्थिति होगा, जिस पर हम लोग विचार-विमर्श कर सकते हैं। फरवरी तक आपको आपके परिणाम प्राप्त हो जायेंगे। जांच का आधार ईंटों के नमूने होंगे जो २० स्थलों से प्रापत किये जायेंगे। प्रत्येक नमूने का आकार एक अंगुली की नोक से अधिक नहीं होगा। इसके फलस्वरूप प्राप्त आयु विश्वसनीय होगी, जिसमें दोनों ओर १०० वर्षों से भी कम के सुधार की सम्भावना होगी। थरमोल्युमिनीसेन्स विज्ञान का प्रयोग कयिा जायेगा। प्रति जाँच के लिये लकड़ी के नमूने भी लिये जा सकते हैं। सत्य ही आपका मारविन एच. मिल्स प्रतिलिपि : श्री आर. सेनगुप्त श्री रमेश चन्द उक्त पत्र मिलने पर भारत सरकार को उस पुत्री के पिता की भांति प्रसन्न हो जाना चाहिए था, जिसकी पुत्री की आयु ३० वर्ष से ऊपर हो गई हो। और जो १०-१२ वर्ष से वर ढूँढ रहा हो और अनायास एक सुन्दर सम्पन्न युवक आकर उससे उसकी कन्या का हाथ माँगे। परन्तु हा ! हन्त!! भारत सरकार का उत्तर उस मूर्ख व्यक्ति के समान था जिसमें अपनी मिथ्या कुलीनता का दम्भ कूट-कूट कर भरा हो।
उत्तर देखिये :
क्र. एफ. २३/४/८४-सी
भारत सरकार भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण जनपद,
नई दिल्ली १ नवम्बर, १९८४
प्रिय महोदय, कृपया आपके दिनांक ०३/१०/१९८४ के पत्र के सन्दर्भ में जो डा. एम. एस. नागराजराय को सम्बोधित किया गया था तथा जो ताजमहल की आयु- गणना के सम्बन्ध में था। ताजमहल की आयु अभिलेखीय लिखित साक्ष्य के आधार पर सही निर्धारित है। इसके अतिरिक्त भाभा अणु अनुसन्धान संस्थान बम्बई तथा भौतिकीय अनुसन्धान प्रयोगशाला अहमदाबाद भी इस समस्या के समाधान हेतु प्रयत्नशील हैं। अतः इस विषय पर, इस स्तर पर और अधिक जांच कराना उचित नहीं समझा गया है। फिर भी, आपका प्रस्ताव प्रशंसनीय है। भवदीय ह. (एस. पी. मुखर्जी) कृते महानिदेशक उपरोक्त दोनों पत्रों की निष्पक्ष समीक्षा, जन-हित, सत्यशोधन-हित एवं न्याय-हित में आवश्यक है। प्रथम पत्र न केवल विस्तृत एवं सभी आवश्यक सूचनाओं से परिपूर्ण है अपितु गरिमायुक्त भी है श्री मिल्स अपनीयोग्यताएं एवं अनुभव बताते हुए अपने कार्य को विस्तार से समझाते हैं। संसार की विशिष्ट प्रयोगशालाओं से अपने सम्बन्धों की चर्चा करते हुए वे भारत आकर ताजमहल की आयु निर्धारित करने का प्रस्ताव करते हैं वह यह भी स्पष्ट करते हैं कि ऐसा करना क्यों आवश्यक है ?  इसके लिये वे किसी विशेष धनराशि की मांग भी नहीं करते हें एवं ताजमहल को किसी प्रकार की हानि न होने देने का पूर्ण आश्वासन भी देते हैं। साथ ही साथ एक मास के अन्दर पूर्ण विश्वासी आयु बताने का आश्वासन भी देते हैं, जिसमें १०० वर्ष से अधिक अन्तर होने की कोई सम्भावना नहीं होगी। इस गरिमायुक्त पत्र का भारत सरकार द्वारा अत्यन्त रूखा एवं चालू उत्तर दिया गया। विभाग के अनुसार अभिलेखीय लिखित साक्ष्य के आधार पर ताजमहल की आयु के सम्बन्ध में कोई भ्रम नहीं है, जबकि इस समय संसार के हर कोने से इस आयु के सम्बन्ध में उंगली उठाई जा रही हैं। वह कौन से अभिलेखीय प्रमाण हैं ? एक प्रमाण जो विभाग ने प्रकाशित कराया है स्वयं स्वीकार करता है कि रानी को दफनाने के लिये राजा मानसिंह का महल चुना गया था। यही प्रमाण आगे (बिना महल गिराये) ताजमहल बनाने की बात भी करता हैं विभाग के एक अन्य अधिकारी श्री एम. एस. वत्स सन् १९४६ में औरंगजेब के सन् १६५२ के पत्र का प्रकाशन करते हैं जिसके अनुसार उस समय (सन् १६५२ में) न तो ताजमहल बन ही रहा था और न नया बना था, अपितु पुराना एवं जीर्ण-शीर्ण दशा में था। साथ ही इसी पत्र में विभाग ने श्री मिल्स को यह भी सूचित किया कि इस काय्र को बम्बई एवं अहमदाबाद की प्रयोगशालाएँ कर रही हैं। बहुत खूब ! जब ताजमहल की सही आयु प्रमाणित है तो यह प्रयोगशालाएँ क्या कर रही हैं ? भारत सरकार को यह तो पूर्ण अधिकार है कि कोई गम्भीर एवं उत्तरदायित्वपूर्ण कार्य किसी विदेशी से न कराके स्वयं ही कराए, परन्तु सरकार को यह अधिकार नहीं है कि वह यह झूठ बोले कि इस विषय पर कोई कलह नहीं हैं अभी कुछ प्रश्न और हैं जो जनता को सरकार से पूछने चाहिए। श्री मारविन मिल्स फरवरी १९८५ तक परिणाम घोषित करने का दावा कर रहे थे। बम्बई एवं अहमदाबाद की प्रयोगशालाएँ नवम्बर १९८३ (पता नहीं कितने पहले) से यह कार्य कर रही हें। पिछले १४ साल में परिणाम सामने क्यों नहीं आ सके ? क्या इन प्रयोगशालाओं के पास वह क्षमता है, जो क्षमता इंग्लैण्ड एवं अमरीका की उन प्रयोगशालाअें के पास है जिनके सहयोग सेश्री मिल्स यह परीक्षण करने वाले थे क्या हमारी प्रयोगशालाएं वैज्ञानिक दृष्टि से इतनी विकसित तथा तकनीकी दृष्टि से इतनी आध्ुानकि हो चुकी हैं, जो इस गुरुतर कार्य को कर सकें ? क्या हमारे वैज्ञानकि ज्ञान, योग्यता एवं अनुभव में श्री मिल्स के समकक्ष हो गये हैं ? पाठकों ! यह मामला कोई रक्षा उत्पादन, तटीय सुरक्षा अथवा भारत की सम्प्रभुता से जुड़ा नहीं था जो हमें किसी विदेशी शोधार्थी की राय लेने में हानि होने की सम्भावना प्रतीत होती हो। यह तो मात्र ज्ञान, शोध एवं सत्यान्वेषण की बात थी। श्री मिल्स के साथ कार्य करके हमारे वेज्ञानकि बहुत कुछ सीख सकते थे। श्री मिल्स से इस प्रकार का समझौता भी किया जा सकता था। शिक्षा एवं संस्कृति तथा विज्ञान विषयों पर इस देश में अनेक कार्यशालाओं एवं सेमिनारों का आयोजन होता रहता है, जिसमें विदेशी विद्वान् भी भाग लेते हैं। क्या ही अच्छा हो कि पुरातन भवनों की आयु निर्धारण पद्धति पर एक अच्छी अन्तर्राष्टीय कार्यशाला का आयोजन पुरातत्व विभाग के तत्वाधान में भारत सरकार करे। परन्तु ऐसा होगा नहीं, क्योंकि भारत सरकार एवं पुरातत्व विभाग को ताजमहल की वास्तविक आयु का भली-भांति ज्ञान हैं आप कहेंगे कैसे ? तो उत्तर सुनिये। ताजमहल के बन्द एवं प्रच्छन्न भाग चाहे जनता से छिपे हों, परन्तु विभाग के अधिकारियों को भली-भांति मालूम है कि उसके अन्दर शाहजहाँ ने क्या छिपाया था ? रानी का शव छः मास से अधिक समय तक बाग में रखा रहां उतने दिनों तक भवन में क्या-क्या तोड़-फोड़ हुई इसके सारे प्रमाण उनकी नजरों के सामने हैं। रानी को कब चुपचाप दफना दिया गया कि उसकी तारीख भी किसी को बताई नहीं गईं शायद महीनों या वर्षों बाद घोषित किया गया कि उसे तो दफना दिया गया था। अब पाठकगण समझ ही गये होंगे कि जिसके पास नकली हीरा होता है, वह जानते हुए किसी विशेषज्ञ के पास जाँच कराए जाने का साहस नहीं करता है, चाहे नाटक कितना ही करता रहे।
Source : https://www.facebook.com/neerajsaini98/posts/10200115484808784

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